अस्तित्व को समझना: होने का नृत्य
लेखक: अभय सिंह (IIT बाबा) आसमान बदलता है। बादल बहते हैं। रोशनी मुड़ती है, फैलती है, हर चीज़ पर नए रंग बिखेरती है। एक पक्षी उड़ता है, अपने पंखों से विशाल आकाश को चीरता हुआ। एक नदी बहती है, अपनी धारा से मौन में एक लय जोड़ती हुई। सबकुछ—सबकुछ—गति में है। लेकिन हम इसे देख…