लेखक: अभय सिंह (IIT बाबा)
आसमान बदलता है। बादल बहते हैं। रोशनी मुड़ती है, फैलती है, हर चीज़ पर नए रंग बिखेरती है। एक पक्षी उड़ता है, अपने पंखों से विशाल आकाश को चीरता हुआ। एक नदी बहती है, अपनी धारा से मौन में एक लय जोड़ती हुई।
सबकुछ—सबकुछ—गति में है।
लेकिन हम इसे देख नहीं पाते।
हम चलते रहते हैं, विचारों में उलझे हुए, उम्मीदों में फँसे हुए, अतीत और भविष्य के बोझ तले दबे हुए। लेकिन अगर हम, सिर्फ़ एक पल के लिए, रुक जाएँ? अगर हम बस देखें?
यह लेख न तो किसी दर्शन पर है, न ही किसी उत्तर पर। यह बस होने पर है। उस क्षण को जीने पर, जहाँ विचारों का शोर खत्म हो जाता है और हम जीवन को वैसे ही देख सकते हैं, जैसा वह है।
1. अभी की बदलती सुंदरता
“आसमान कितना सुंदर है… बहुत ही सुंदर। बादलों और रोशनी का नृत्य। यह बदल रहा है। और हर बदलाव सुंदर है।”
जीवन में कुछ भी स्थिर नहीं है। आसमान हर पल नया होता है। कोई सूर्योदय या सूर्यास्त कभी एक जैसा नहीं होता। हर नदी की लहर पहले से अलग होती है।
लेकिन हम इसे नोटिस नहीं करते। हम हमेशा विशेष पलों का इंतज़ार करते हैं, कुछ बड़ा होने का इंतज़ार करते हैं। और इसी चक्कर में, हम उस अनंत सुंदरता को खो देते हैं, जो हर क्षण हमारे सामने घट रही होती है।
उदाहरण:
क्या तुमने कभी हवा में झूमते पेड़ को ध्यान से देखा है? बस एक नज़र नहीं, बल्कि सच में देखा है? उसमें एक लय होती है, एक मौन नृत्य, जिसे किसी दर्शक की ज़रूरत नहीं होती।
जीवन तुम्हारे देखने के इंतज़ार में नहीं रुकता। यह बस बहता रहता है।
2. जीवन को शब्दों से नहीं समझा जा सकता
“अगर तुम सोचते हो कि इन शब्दों से जीवन को समझ सकते हो, तो यह असंभव है।”
शब्द जीवन को पकड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे असफल होते हैं।
मैं नदी की ध्वनि का वर्णन कर सकता हूँ, लेकिन क्या तुम उसे सुन सकते हो?
मैं एक सूर्योदय को शब्दों में लिख सकता हूँ, लेकिन क्या तुम उसे देख सकते हो?
विचार हमेशा वास्तविकता की परछाईं होते हैं, वास्तविकता नहीं। जिस पल हम किसी चीज़ को परिभाषित करने की कोशिश करते हैं, हम उसे सीमित कर देते हैं।
उदाहरण:
एक कवि प्रेम पर हज़ारों पंक्तियाँ लिख सकता है, लेकिन प्रेम शब्दों में नहीं होता। प्रेम दिल की धड़कन में होता है, दो लोगों के बीच की ख़ामोशी में होता है, उस एहसास में होता है जिसे शब्द नहीं दिया जा सकता।
अनुभव ही एकमात्र सच्चाई है।
3. चेतना भी एक नृत्य है
“नदी की आवाज़, दिल की धड़कन, मांसपेशियों का संकुचन और विस्तार—यह सब चेतना का नृत्य है।”
तुम्हारे अंदर, तुम्हारे बाहर, तुम्हारे चारों ओर—सबकुछ गति में है।
- साँस भीतर जाती है, बाहर आती है।
- रक्त शरीर में प्रवाहित होता है।
- विचार उठते हैं, गिरते हैं।
जैसे हवा पेड़ों को हिलाती है, जैसे सूरज परछाइयों को बदलता है, वैसे ही हमारी चेतना भी हर पल बह रही है।
उदाहरण:
अपनी आँखें बंद करो। अपनी धड़कन सुनो। अपनी त्वचा पर हवा का स्पर्श महसूस करो।
इस गति को महसूस करना ही सच में जीवित होना है।
4. मन उसी को रोशनी देता है, जिस पर वह ध्यान देता है
“वह चंचल मन… जहाँ भी वह टिकता है, वही दुनिया बन जाती है।”
क्या तुमने नोटिस किया है कि जिस चीज़ पर तुम ध्यान देते हो, वही बड़ी लगने लगती है?
- अगर तुम चिंता में हो, तो छोटी समस्याएँ भी बहुत बड़ी लगती हैं।
- अगर तुम प्रेम में हो, तो हर चीज़ सुंदर दिखती है।
- अगर तुम शांति पर ध्यान दो, तो दुनिया धीमी लगने लगती है।
तुम्हारा मन एक रोशनी की तरह है। वह जिस पर चमकता है, वही तुम्हारी हकीकत बन जाती है।
उदाहरण:
एक बच्चा चींटियों के झुंड को देखकर मंत्रमुग्ध हो सकता है। एक वयस्क उसे एक सेकंड देखता है और आगे बढ़ जाता है। अंतर क्या है? ध्यान।
तुम्हारा ध्यान ही तुम्हारी दुनिया बनाता है।
5. बस बैठो। बस देखो।
“आओ बैठें… बस बैठें… और पहली बार जीवन को एक दर्शक की तरह देखें।”
हम हमेशा कुछ करने में लगे रहते हैं। हमेशा कुछ पाने, समझने, सुधारने, योजना बनाने की कोशिश में रहते हैं। लेकिन जीवन केवल गति के बारे में नहीं है। यह ठहरने के बारे में भी है।
क्या तुमने कभी बस बैठने की कोशिश की है?
बिना फ़ोन के। बिना संगीत के। बिना किसी काम के।
उदाहरण:
किसी पार्क में बैठो। चिड़ियों को देखो, आसमान को देखो, आते-जाते लोगों को देखो। लेकिन विश्लेषण मत करो, जज मत करो—बस देखो।
जब तुम ऐसा करते हो, कुछ बदल जाता है। मन शांत हो जाता है। दुनिया स्पष्ट दिखने लगती है।
जीवन उपस्थिति में है, गति में नहीं।
6. जीवन की मिठास समझने में नहीं, अनुभव करने में है
“बस चिड़िया की आवाज़ सुनो। यही ध्वनि की मिठास है।”
हम जीवन में अर्थ खोजने की कोशिश करते हैं। हम प्रेम, खुशी, सफलता को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्या अर्थ कोई ऐसी चीज़ है जिसे पाया जा सकता है? या यह बस अनुभव करने की चीज़ है?
उदाहरण:
एक गीत शब्दों और सुरों से नहीं बना होता। वह एहसास से बना होता है। अगर तुम उसे ज़्यादा समझने की कोशिश करोगे, तो शायद तुम कभी उसमें झूम नहीं पाओगे।
जीवन को समझने की नहीं, जीने की ज़रूरत है।
7. प्रवाह में रहना ही अस्तित्व है
“सूरज वही करता है जो सूरज करता है। नदी वही करती है जो नदी करती है। मनुष्य वही करता है जो मनुष्य करता है।”
प्रकृति में हर चीज़ अपने स्वाभाविक रूप में होती है। सूरज उगता है, नदी बहती है, पेड़ बढ़ते हैं। वे अपने स्वभाव के खिलाफ़ नहीं जाते।
सिर्फ़ इंसान संघर्ष करता है।
- हम चीज़ों को पकड़ कर रखते हैं, बजाय उन्हें बहने देने के।
- हम बदलाव से डरते हैं, बजाय उसे अपनाने के।
- हम जीवन को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं, बजाय इसके साथ बहने के।
उदाहरण:
सोचो अगर समुद्र अपनी लहरों को रोकने की कोशिश करे। सोचो अगर हवा बहने से इनकार कर दे।
अस्तित्व का अर्थ प्रवाह में रहना है। संघर्ष का अर्थ है पीड़ा।
8. जीवन का संतुलन
“अंधेरा बढ़ रहा है। कपड़े बदल रहे हैं। ऊर्जा का संतुलन बदल रहा है।”
जीवन चक्रों में चलता है। दिन से रात, जन्म से मृत्यु, वृद्धि से पतन।
जब हम इन चक्रों का विरोध करना बंद कर देते हैं, तभी हम शांति में होते हैं।
हर चीज़ जुड़ी हुई है। हर चीज़ संतुलित है।
निष्कर्ष: बस हो जाओ
अगर इस लेख से कुछ समझने लायक है, तो बस यही—
तुम्हें कुछ करने की ज़रूरत नहीं है। बस होने की ज़रूरत है।
मत खोजो। मत पकड़ो। मत संघर्ष करो।
बस देखो। बस सुनो। बस जियो।
क्योंकि जीवन पहले से ही घट रहा है। बस तुम्हें यहाँ रहना है, इसे देखने के लिए।