लेखक: अभय सिंह (IIT बाबा)
क्यों हम बस शांति से नहीं बैठ सकते? बिना कुछ करने, बिना कुछ बनने, बिना कुछ साबित करने? इसका जवाब आसान लगता है—“हमें पैसे कमाने हैं, हमें ज़िंदा रहना है।”
लेकिन अगर आप यह पढ़ रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आपके पास समय है। सोचने के लिए, ठहरने के लिए, कुछ न करने के लिए।
फिर भी, हम ऐसा नहीं करते।
हम एक खेल में फँसे हैं। ऐसा खेल, जिसका कोई तय अंत नहीं, कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं—फिर भी हम इसे खेलते जा रहे हैं। क्यों? और उससे भी ज़रूरी—अगर बस यही पल, यही अभी, सबकुछ हो, तो क्या होगा?
यह लेख समय के भ्रम को तोड़ने, लगातार कुछ करने की भागदौड़ को समझने और उन उम्मीदों से मुक्त होने के बारे में है, जो हमें अभी जीने से रोकती हैं।
1. जीवन का कभी न खत्म होने वाला खेल
“तुम ये कर रहे हो ताकि वो कर सको? क्या हम एक अंतहीन खेल खेल रहे हैं? क्या हमें इसका अंतिम लक्ष्य भी पता है?”
जीवन अक्सर एक काम से दूसरे काम की कड़ी जैसा लगता है।
- पढ़ाई करो ताकि नौकरी मिले।
- नौकरी करो ताकि पैसे कमाओ।
- पैसे कमाओ ताकि आराम पा सको।
- आराम पाओ ताकि खुश रहो।
- खुश रहो ताकि… फिर क्या?
यह चक्र कभी रुकता नहीं। हम हमेशा “सही समय” का इंतज़ार करते रहते हैं—वो पल जब सबकुछ परफेक्ट होगा। लेकिन वह पल कभी नहीं आता, क्योंकि यह खेल हमें हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए बना है।
उदाहरण:
सोचो कि तुम एक सीढ़ी चढ़ रहे हो, यह सोचकर कि ऊपर जाकर तुम्हें खुशी मिलेगी। लेकिन जब तुम अंतिम सीढ़ी पर पहुँचते हो, तो एक और सीढ़ी दिखती है। फिर एक और। यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होता, क्योंकि हम कभी खुद से सवाल नहीं करते—“क्या असली मंज़िल ऊपर है या कहीं और?”
अगर असली मकसद सीढ़ी की चोटी पर नहीं, बल्कि बस रुककर जीने में हो, तो?
2. जीवन की नाज़ुकता: अगर यह तुम्हारी आखिरी साँस हो?
“जब तुम यह पढ़ रहे हो, कितने लोग इस क्षण में दुनिया छोड़ चुके हैं?”
हर सेकंड, कहीं न कहीं कोई न कोई मर रहा है। न सिर्फ़ इंसान—पौधे, जानवर, पूरी की पूरी दुनिया हर पल बदल रही है।
फिर भी, हम ऐसे जीते हैं जैसे हमारे पास अनंत समय हो। जैसे कल पक्का आएगा।
लेकिन अगर यह तुम्हारा आखिरी पल हो, तो क्या तुम इसे पूरी तरह जियोगे? क्या तुम हर चिंता छोड़ दोगे, हर झिझक मिटा दोगे, और बस होने का अनुभव करोगे?
उदाहरण:
अगर तुम्हें बताया जाए कि तुम्हारे पास जीने के लिए बस एक मिनट बचा है—तो क्या तुम उसे चिंता में बिताओगे? या फिर उस एक मिनट में हर छोटी चीज़ को महसूस करोगे—साँसों की गर्माहट, हवा का स्पर्श, अपने आसपास की आवाज़ें?
आखिरी पल तक इंतज़ार क्यों? अभी से पूरी तरह जीना क्यों नहीं?
3. झिझक जो हमें रोकती है
“हम जो देखते हैं, उसे पूरी तरह क्यों नहीं देखते? जो सुनते हैं, उसे गहराई से क्यों नहीं सुनते?”
हम जीवन को पूरी तरह महसूस नहीं कर पाते, क्योंकि हम झिझकते हैं।
- हम देखते हैं, लेकिन ध्यान नहीं देते।
- हम सुनते हैं, लेकिन वास्तव में नहीं सुनते।
- हम प्यार करते हैं, लेकिन पूरी तरह नहीं अपनाते।
क्यों? क्योंकि हमें डर है—डर कि अगर हमने कुछ पूरी तरह महसूस कर लिया, तो शायद हम बदल जाएँगे।
उदाहरण:
एक बच्चा हर चीज़ को आश्चर्य से देखता है, क्योंकि उसके पास कोई झिझक नहीं होती। वह यह नहीं सोचता कि “क्या यह सुंदर है?” वह बस देखता है।
अगर हम फिर से उसी अवस्था में लौट सकते, जहाँ हर पल बिना किसी रुकावट के जिया जाता?
4. समय का भ्रम: बेहतर भविष्य का इंतज़ार
“हम समय क्यों बिताते हैं? एक बेहतर समय की उम्मीद में। लेकिन अगर यही पल सबकुछ हो, तो?”
हम हमेशा एक ऐसे भविष्य की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं, जो हमारे जीवन को “सही” बना देगा।
- जब मेरे पास ज़्यादा पैसा होगा, तब मैं खुश रहूँगा।
- जब मुझे सच्चा प्यार मिलेगा, तब मैं पूरा महसूस करूँगा।
- जब मैं सफल हो जाऊँगा, तब जीवन शुरू होगा।
लेकिन भविष्य कभी आता नहीं। जब हम वहाँ पहुँचते हैं, तो एक नया लक्ष्य बन जाता है।
उदाहरण:
एक व्यक्ति प्रतीक्षालय में बैठा है, यह सोचते हुए कि उसकी असली ज़िंदगी तब शुरू होगी जब वह अगले कमरे में जाएगा। लेकिन अगर वह कभी अंदर ही न जा पाए? अगर असली जीवन उसी प्रतीक्षा में था?
इंतज़ार मत करो। यही पल ही सबकुछ है।
5. करने की बेचैनी: मशीन जैसा जीवन
“हम मशीन की तरह जी रहे हैं। हमारा पूरा समय किसी और के नियंत्रण में। हर पल बेचैनी में, कुछ अधूरा महसूस करते हुए।”
बचपन से हमें सिखाया जाता है कि हमेशा कुछ करना चाहिए। खाली बैठना गलत लगता है। किसी योजना के बिना रहना विफलता लगती है।
और फिर भी, हम अक्सर खुद को खाली महसूस करते हैं।
उदाहरण:
एक कारखाने में काम करने वाला मजदूर दिन-रात मेहनत करता है, यह सोचकर कि वह कुछ बड़ा बना रहा है। लेकिन जब वह बूढ़ा होता है, तो उसे एहसास होता है कि उसने सिर्फ़ काम किया, लेकिन कभी जिया नहीं।
क्या तुम अपने लिए जी रहे हो, या बस एक मशीन के हिस्से हो?
6. आज़ाद होना: खुद को परिभाषित करना बंद करो
“खुद को उन परिभाषाओं में मत बाँधो जो तुम्हें दी गई हैं। सही-गलत की बातें सिर्फ़ तुम्हें जकड़ने के लिए हैं।”
समाज हमें सिखाता है कि क्या सही है, क्या गलत, कैसे जीना चाहिए। लेकिन ये नियम केवल हमें नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं, हमें मुक्त करने के लिए नहीं।
सच्ची आज़ादी तब शुरू होती है जब हम खुद को परिभाषित करना छोड़ देते हैं।
उदाहरण:
एक नदी यह नहीं सोचती कि “क्या मैं सही दिशा में बह रही हूँ?” वह बस बहती है।
अगर हम भी ऐसे जी सकते—बिना ज़रूरत से ज़्यादा सोचने के, बिना झिझक के?
7. खुद को जीवित महसूस करने की कोशिश
“हम कोशिश तो करते हैं, है ना? रोमांच से, नशे से, नई चीज़ों से—ताकि खुद को जकड़न से आज़ाद कर सकें। क्या यह सच में काम करता है?”
हम जीवन को महसूस करने के लिए बाहरी चीज़ों पर निर्भर रहते हैं—लेकिन यह एहसास कभी स्थायी नहीं होता।
उदाहरण:
कोई व्यक्ति ऊँचाई से कूदता है, उस पल में उत्साह महसूस करता है। लेकिन जैसे ही वह ज़मीन पर उतरता है, वही खालीपन लौट आता है।
अगर जीवित महसूस करने के लिए बाहरी चीज़ों की ज़रूरत ही न पड़े? अगर हम बस “अभी” में रहने से संतुष्ट हो जाएँ?
8. एकमात्र सत्य: जीवन अभी है
“सीमाओं में बंधा प्रेम, प्रेम नहीं है। समय में बंधा जीवन, जीवन नहीं है।”
सच्चा जीवन तभी होता है जब हम हर सीमा को छोड़ दें—समय की, पहचान की, उम्मीदों की।
उदाहरण:
एक पक्षी उड़ने के बारे में नहीं सोचता। वह बस उड़ता है।
जीवन को सोचने की नहीं, जीने की ज़रूरत है।
निष्कर्ष: इंतज़ार मत करो, जीना शुरू करो
मन हमेशा वजहें देगा, जीवन को टालने के लिए।
लेकिन अगर “अभी नहीं” कभी खत्म ही न हो?
यही पल—यही जीवन है। यही सबकुछ है।
मत रुको। मत झिझको। मत रोको।
बस जियो।