प्रेम को समझना: साथ होने का नृत्य और अस्तित्व की कला

लेखक: अभय सिंह (IIT बाबा)

क्या प्रेम का मतलब अपने आप को खो देना है या खुद को अपनाना?

यह एक ऐसा सवाल है जो हमें दो रास्तों में से एक चुनने को कहता है। लेकिन प्रेम कोई चुनाव नहीं है। न तो यह बलिदान है, न ही सिर्फ़ खुद को बनाए रखना—यह एक नृत्य है, एक लय जो दो लोगों के बीच बहती है, जहाँ न कोई आगे चलता है, न कोई पीछे।

प्रेम गति है। प्रेम प्रवाह है। यह स्थिर नहीं है। यह निरंतर बदलती ऊर्जा का संतुलन है, एक ऐसी कला जहाँ दो लोग एक-दूसरे के साथ बिना किसी ज़बरदस्ती के, सहज रूप से चलते हैं।

यह लेख प्रेम को एक भावना या कर्तव्य की तरह नहीं, बल्कि एक अवस्था की तरह देखता है—जहाँ हर अलगाव मिट जाता है और सिर्फ़ जुड़ाव रह जाता है।


1. प्रेम न देने में है, न लेने में—यह बस बहने में है

“क्या प्रेम अपने आप को त्यागने में है या खुद को अपनाने में? प्रेम वहीं होता है, जहाँ जरूरत होती है—कभी खुद को पूरी तरह स्वीकारने में, तो कभी खुद को छोड़ने में।”

हम प्रेम को अक्सर या तो – या में बाँटते हैं:

  • या तो तुम पूरा खुद को खो दो, और दूसरे में समा जाओ।
  • या तुम अपनी पहचान को मजबूती से पकड़कर रखो और कहो कि प्रेम तुम्हें वैसे ही स्वीकार करे।

लेकिन प्रेम इनमें से कुछ भी नहीं है।

प्रेम जो क्षण में आवश्यक है, वही है। कभी प्रेम तुम्हें खुद के प्रति सच्चा रहने को कहता है, कभी यह तुम्हें अपनी सीमाओं को छोड़ने के लिए बुलाता है। असली सवाल यह नहीं कि कौन-सा रास्ता सही है, बल्कि यह है कि अभी के क्षण में क्या ज़रूरी है?

उदाहरण:

एक संगीतकार ऑर्केस्ट्रा में बजाता है। कभी उसका वाद्ययंत्र मुख्य धुन बजाता है, कभी वह पीछे हटकर बाकी संगीत में घुल जाता है। संगीत का सौंदर्य न तो नियंत्रण में है, न ही पूरी तरह आत्मसमर्पण में—यह संतुलन में है।

प्रेम भी ऐसा ही है। यह त्याग नहीं है, यह माँग नहीं है। यह बस क्षण की ज़रूरत को पहचानना है।


2. प्रेम दो का एक नृत्य है

“प्रेम नृत्य में है—तुम्हारे साथ मेरा। जब कदम एक-दूसरे से मेल खाएँगे, तो न कोई आगे होगा, न कोई पीछे।”

कल्पना करो दो नर्तकों की।

  • अगर एक हावी होगा, तो दूसरा बाध्य होगा।
  • अगर दोनों प्रतिरोध करेंगे, तो नृत्य टूट जाएगा।
  • लेकिन अगर वे एक-दूसरे के साथ बहते हैं, तो वे एक ऐसी लय बनाते हैं जो दो व्यक्तियों से परे होती है—एक प्रवाह

प्रेम न नियंत्रण है, न समर्पण। प्रेम एक स्थिर अवस्था नहीं है। यह निरंतर समायोजन, एक तालमेल है, जहाँ दो लोग दो नहीं रहते, बल्कि एक प्रवाह बन जाते हैं।

उदाहरण:

सागर और उसकी लहरों को देखो। सागर लहरों को नियंत्रित नहीं करता, और लहरें सागर का विरोध नहीं करतीं। वे सहज रूप से एक-दूसरे के साथ बहती हैं

यही प्रेम है—बिना ज़बरदस्ती के बहना, बिना सीमाओं के अस्तित्व में रहना।


3. गति ही जीवन है—प्रेम साथ में बहने की कला है

“जीवन गति में है, इसलिए मैं दूसरों के साथ बह रहा हूँ, और दूसरे मेरे साथ बह रहे हैं।”

जीवन की हर चीज़ गति में है।

  • पृथ्वी घूम रही है।
  • तारे चलते रहते हैं।
  • हमारी साँसें अंदर-बाहर बहती हैं।

जीवन चलने में है। और प्रेम तब होता है जब दो जीवन एक साथ बहते हैं

उदाहरण:

दो लोग साथ चल रहे हैं। अगर एक तेज़ चले, तो दूसरा पीछे छूट जाएगा। अगर एक धीमा हो जाए, तो दूसरा इंतज़ार करेगा। लेकिन जब दोनों एक-दूसरे की चाल के हिसाब से चलते हैं, तो चलना सहज हो जाता है।

प्रेम भी ऐसा ही है—एक ऐसा प्रवाह जहाँ दोनों बिना संघर्ष के, बिना बाधा के साथ चलते हैं।


4. प्रेम ज़बरदस्ती नहीं है—यह समझ है

“मैं खुद को ज़बरदस्ती से नहीं, बल्कि समझ से मिटाता हूँ। जब तुम इसे देखोगे, महसूस करोगे, जानोगे—तो यह स्वतः विलीन हो जाएगा।”

बहुत से लोग सोचते हैं कि प्रेम का मतलब खुद को मिटा देना है—कि किसी को प्रेम करने के लिए हमें खुद को खोना पड़ेगा।

लेकिन सच्चा प्रेम खोने में नहीं, समझने में है।

जब तुम किसी को गहराई से समझते हो, जब तुम सच में उन्हें देखते हो, तो तुम और वे अलग नहीं रहते—लेकिन यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया होती है, न कि कोई त्याग।

उदाहरण:

एक नदी सागर में ज़बरदस्ती नहीं घुलती। वह बहती है, चलती है, और अंत में, बिना किसी प्रतिरोध के, अपने आप उसमें मिल जाती है।

प्रेम भी ऐसा ही है—यह किसी को जबरन अपनाने का नहीं, बल्कि गहराई से समझने का नाम है।


5. हम अलग नहीं हैं—प्रेम एकता का एहसास है

“हम जुड़े हुए हैं, इसलिए प्रेम कोई एकतरफा क्रिया नहीं हो सकता। जो हम दुनिया में बाहर भेजते हैं, वही हमें वापस मिलता है।”

प्रेम कभी अकेले नहीं होता।

तुम जब अकेले भी होते हो, तब भी तुम अपने विचारों, अपनी भावनाओं और अपने ही बनाए हुए संसार के साथ एक रिश्ते में होते हो।

  • अगर तुम भीतर गुस्सा लिए हो, तो तुम्हें बाहर गुस्सा दिखेगा।
  • अगर तुम प्रेम से भरे हो, तो तुम्हें बाहर प्रेम ही दिखेगा।
  • दुनिया अलग नहीं है—वह बस तुम्हारा प्रतिबिंब है।

उदाहरण:

अगर तुम एक तालाब में पत्थर फेंकोगे, तो लहरें पूरे पानी में फैलेंगी। उसी तरह, तुम्हारे हर शब्द, हर क्रिया, हर भावना का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ता है।

दूसरों को प्रेम करना, खुद को प्रेम करना है। दूसरों को चोट पहुँचाना, खुद को चोट पहुँचाना है।


6. प्रेम का अंतिम सत्य: साथ में बहना सीखो

प्रेम कोई स्थिर अवस्था नहीं है।
प्रेम कोई मंज़िल नहीं है।
प्रेम गति है।

  • कभी यह तुम्हें खुद के प्रति सच्चा बनाए रखता है।
  • कभी यह तुम्हें अपने अहंकार को छोड़ने के लिए कहता है।
  • कभी यह तुम्हें कसकर पकड़ता है।
  • कभी यह तुम्हें मुक्त करता है।

लेकिन प्रेम हमेशा एक नृत्य है—एक ऐसा प्रवाह जहाँ दो लोग न तो हारते हैं, न जीतते हैं, बस एक-दूसरे के साथ बहते हैं

अगर हम सच में एक-दूसरे को देख सकें, अगर हम सच में समझ सकें, तो प्रेम कठिन नहीं रहेगा। प्रेम सहज हो जाएगा। प्रेम जीवन बन जाएगा।


निष्कर्ष: प्रेम के साथ बहो, जीवन के साथ बहो

यह मत पूछो—“क्या मुझे खुद को त्याग देना चाहिए या खुद को बनाए रखना चाहिए?”
पूछो—“मैं प्रेम के साथ कैसे बह सकता हूँ? मैं जीवन के प्रवाह के साथ कैसे चल सकता हूँ?”

प्रेम कुछ करने में नहीं है
प्रेम कैसे बहते हो, उसमें है

इसे एक नृत्य बनने दो। इसे एक लय बनने दो।

और इसी गति में, इसी प्रवाह में, तुम्हें एहसास होगा—

प्रेम कुछ पाने की चीज़ नहीं थी। यह कुछ बनने की चीज़ थी।

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